Centre News Express (24 August Desraj)
टेलिकॉम रेगुलेटर ट्राई ने फर्जी कॉल और मैसेज पर अपना रुख सख्त कर लिया है। ट्राई के आदेश के मुताबिक टेलिकॉम कंपनियों को 1 सितंबर से ऐसे मैसेज ट्रांसमिट नहीं करने होंगे जिनमें यूआरएल, ओटीटी लिंक या एपीके (एंड्रॉइड एप्लिकेशन पैकेज) शामिल हैं। साथ ही ऐसे कॉल बैक नंबरों को भी इसमें शामिल किया गया है जो टेलिकॉम कंपनियों के साथ वाइटलिस्ट या रजिस्टर्ड नहीं हैं। इसका मकसद स्पैम विशेष रूप से फिशिंग मैसेज पर अंकुश लगाना है। लेकिन इससे ग्राहकों को अपने मोबाइल फोन पर बैंकों, वित्तीय संस्थानों और ई-कॉमर्स फर्मों से सर्विसेज और ट्रांजैक्शन से जुड़े मैसेज प्राप्त करने में व्यवधान का सामना करना पड़ सकता है।
ट्राई के अल्टीमेटम का मतलब है कि बैंकों, वित्तीय संस्थानों और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स को 31 अगस्त की डेडलाइन तक अपने टेम्प्लेट और कंटेंट को टेलिकॉम ऑपरेटर्स के साथ रजिस्टर्ड करवाना होगा। ऐसा न करने पर उनके मैसेज को ब्लॉक कर दिया जाएगा। अभी वे अपने हेडर और टेम्प्लेट को टेलिकॉम कंपनियों के साथ रजिस्टर्ड करवाती हैं, लेकिन मैसेज के कंटेंट के साथ ऐसा नहीं किया जाता है। यानी टेलिकॉम ऑपरेटर ट्रांसमिट होने वाले मैसेज के कंटेंट की जाँच नहीं करते हैं। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि अगले महीने टेलिकॉम कंपनियों को एक ऐसा मैकेनिज्म होगा जो कमर्शियल मैसेज के कंटेंट को पढ़ सके और उन मैसेज को ब्लॉक कर सके जो इसके रिकॉर्ड से मेल नहीं खाते।
रोज कितने मैसेजइंडस्ट्री के आंकड़ों के मुताबिक देश में रोजाना 1.5-1.7 अरब कमर्शियल मैसेज भेजे जाते हैं। हर महीने इनकी संख्या लगभग 55 अरब पहुंच जाता है। जानकारों का कहना है कि टेलिकॉम कंपनियां ट्राई से आदेश को लागू करने के लिए कुछ और समय मांग रही हैं क्योंकि ब्लॉकचेन-आधारित डिस्ट्रीब्यूटेड लेजर टेक्नोलॉजी प्लेटफॉर्म को अपडेट करने की जरूरत है। हालांकि रेगुलेटर को लगता है कि उसने टेलिकॉम कंपनियों को पर्याप्त समय दिया है और वह अब अपना रुख नरम पड़ने को तैयार नहीं है। इस बारे में भारती एयरटेल, रिलायंस जियो और वोडाफोन आइडिया ने ईटी के सवालों का उत्तर नहीं दिया।
वाइटलिस्टिंग का मतलब है कि मैसेज भेजने वाली संस्थाओं को यूआरएल, कॉल-बैक नंबर आदि से संबंधित सभी जानकारी टेलिकॉम कंपनियों को देनी होगी, जो फिर उस जानकारी को अपने डीएलटी प्लेटफॉर्म पर फीड करेंगी। यदि जानकारी मेल खाती है, तो मैसेज भेजा जाता है, अन्यथा, इसे ब्लॉक कर दिया जाता है। उदाहरण के लिए बैंकों से आने वाले ज्यादातर लेन-देन संबंधी मैसेज कॉल-बैक नंबर होता है। इसमें फंड का डेबिट या क्रेडिट शामिल हैं। अगर कोई बैंक नंबर को वाइटलिस्ट में नहीं डालता है, तो ऐसे मैसेज का ट्रांसमिशन रोक दिया जाएगा।