Tuesday, December 16, 2025
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नहीं रहे बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता गोवर्धन असरानी, 84 साल की उम्र में दुनिया को कहा अलविदा, लंबे समय से थे बीमार

CENTRE NEWS EXPRESS (21 OCTOBER DESRAJ)

हिंदी सिनेमा के दिग्गज अभिनेता, निर्देशक और हास्य कलाकार गोवर्धन असरानी, जिन्हें पूरी दुनिया ‘असरानी’ के नाम से जानती है, अब हमारे बीच नहीं रहे। लंबी बीमारी से जूझने के बाद उन्होंने आज शाम करीब 3:30 बजे मुंबई के जुहू स्थित भारतीय आरोग्य निधि अस्पताल में अंतिम सांस ली। वे 84 वर्ष के थे। उनका अंतिम संस्कार आज शाम ही सांताक्रूज़ श्मशान घाट में परिवार और कुछ करीबी दोस्तों की मौजूदगी में शांतिपूर्वक संपन्न हुआ। असरानी की मौत से बॉलीवुड जगत में शोक की लहर है।

असरानी के निजी सहायक बाबूभाई ने बताया कि उन्हें चार दिन पहले अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जब उनके फेफड़ों में तरल पदार्थ जमा होने की शिकायत हुई थी। डॉक्टरों के तमाम प्रयासों के बावजूद वे बच नहीं सके। बाबूभाई ने कहा, “असरानी साहब ने हमेशा कहा था कि वे शांति से जाना चाहते हैं। उन्होंने अपनी पत्नी मंजू जी से कहा था कि उनकी मृत्यु को कोई तमाशा न बनाया जाए। इसलिए परिवार ने पहले अंतिम संस्कार किया और बाद में उनके निधन की जानकारी दी।”

परिवार ने अभी औपचारिक बयान जारी नहीं किया है, लेकिन आने वाले दिनों में प्रार्थना सभा आयोजित किए जाने की संभावना है।

हास्य का पर्याय: असरानी की अमिट छाप

पाँच दशकों से अधिक समय तक असरानी हिंदी सिनेमा के सबसे भरोसेमंद अभिनेताओं में गिने गए। उन्होंने 350 से अधिक फिल्मों में काम किया और हर बार अपने हास्य और स्वाभाविक अभिनय से दर्शकों का दिल जीता। 1970 का दशक उनके करियर का स्वर्णकाल रहा, जब उन्होंने एक के बाद एक यादगार भूमिकाएँ निभाईं। ‘मेरे अपने’, ‘कोशिश’, ‘बावर्ची’, ‘परिचय’, ‘अभिमान’, ‘चुपके-चुपके’, ‘छोटी सी बात’, ‘रफू चक्कर’ जैसी फिल्मों ने उन्हें एक पहचान दी, जो आज तक कायम है।

असरानी का सबसे प्रसिद्ध किरदार रहा ‘शोले’ (1975) का जेलर, जिसकी अनोखी अदायगी और संवाद आज भी भारतीय सिनेमा की यादों में ताजा है। उनकी लाइन “हम अंग्रेजों के ज़माने के जेलर हैं” हिंदी फिल्म इतिहास की सबसे मशहूर कॉमिक लाइनों में से एक बन गई।

सिर्फ अभिनेता नहीं, निर्देशक और लेखक भी थे असरानी

असरानी ने न केवल पर्दे पर बल्कि पर्दे के पीछे भी अपनी प्रतिभा दिखाई। उन्होंने 1977 में ‘चला मुरारी हीरो बनने’ नामक फिल्म लिखी, निर्देशित की और उसमें मुख्य भूमिका निभाई। यह फिल्म एक संघर्षरत अभिनेता की प्रेरक कहानी थी, जो खुद असरानी के जीवन से प्रेरित थी। इसके अलावा उन्होंने ‘सलाम मेमसाब’ (1979) और कई अन्य फिल्मों में भी निर्देशन किया।

हिंदी सिनेमा के साथ-साथ असरानी ने गुजराती फिल्मों में भी अपनी पहचान बनाई। 1970 और 1980 के दशक में वे गुजराती फिल्म जगत के प्रमुख चेहरों में से एक रहे।

जयपुर में हुआ था असरानी का जन्म

असरानी का जन्म जयपुर, राजस्थान में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सेंट जेवियर्स स्कूल, जयपुर से प्राप्त की। अभिनय के प्रति रुझान उन्हें मुंबई तक ले आया, जहाँ उन्होंने फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII), पुणे से अभिनय का प्रशिक्षण लिया। यहीं से उनके शानदार करियर की शुरुआत हुई।

ViaCNE
SourceCNE
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