CENTRE NEWS EXPRESS (15 DECEMBER DESRAJ)
1000 करोड़ के साइबर फ्रॉड मामले में सीबीआई (CBI) ने 58 कंपनियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी है। साइबर फ्रॉड का ये गंदा खेल विदेश से ऑपरेट किया जा रहा था। केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने खुलासा किया है कि संगठित ट्रांसनेशनल साइबर फ्रॉड नेटवर्क में 17 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई है, जिसमें 4 विदेशी नागरिक शामिल हैं। ये लोग देश में हजारों लोगों को ऑनलाइन निवेश, लोन और नौकरी का झांसा देकर ठगी की है।
CBI ने कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, झारखंड और हरियाणा में कुल 27 ठिकानों पर सर्च ऑपरेशन चलाया। इस दौरान बड़ी संख्या में डिजिटल डिवाइस, दस्तावेज और वित्तीय रिकॉर्ड जब्त किए गए, जिनकी फॉरेंसिक जांच की गई।
जानकारी के मुताबिक, यह साइबर फ्रॉड नेटवर्क देश के कई राज्यों में फैला हुआ था और हजारों आम नागरिकों को अलग-अलग ऑनलाइन ठगी योजनाओं के जरिए निशाना बनाया गया। CBI की जांच में सामने आया है कि यह संगठित सिंडिकेट भ्रामक लोन ऐप, फर्जी निवेश स्कीम, पोंजी और MLM मॉडल, नकली पार्ट-टाइम जॉब ऑफर और धोखाधड़ी वाले ऑनलाइन गेमिंग प्लेटफॉर्म के जरिए लोगों को ठग रहा था। इन सभी गतिविधियों के पीछे एक ही नेटवर्क काम कर रहा था।
अक्टूबर 2025 में हुई थी पहली गिरफ्तारी
CBI ने अक्टूबर 2025 में इस मामले में तीन मुख्य भारतीय सहयोगियों को गिरफ्तार किया था। इसके बाद जांच का दायरा बढ़ाया गया, जिसमें साइबर और वित्तीय गड़बड़ी की परत-दर-परत जांच की गई। यह केस गृह मंत्रालय के तहत काम करने वाले I4C (Indian Cyber Crime Coordination Centre) से मिले इनपुट के आधार पर दर्ज किया गया था। शुरुआती तौर पर ये मामले अलग-अलग शिकायतों जैसे दिख रहे थे, लेकिन CBI के डिटेल एनालिसिस में ऐप्स, फंड फ्लो पैटर्न, पेमेंट गेटवे और डिजिटल फुटप्रिंट में चौंकाने वाली समानताएं सामने आईं।
इन धाराओं में दर्ज हुआ केस
CBI ने चारों विदेशी मास्टरमाइंड्स, उनके भारतीय सहयोगियों और 58 कंपनियों के खिलाफ आपराधिक साजिश, जालसाजी, फर्जी दस्तावेजों के इस्तेमाल और Banning of Unregulated Deposit Schemes Act, 2019 के तहत मुकदमा दर्ज किया है। यह कार्रवाई संगठित और ट्रांसनेशनल साइबर वित्तीय अपराधों के खिलाफ CBI के विशेष अभियान Operation CHAKRA-V के तहत की गई है।
विदेश से हो रहा था ऑपरेशन कंट्रोल
फॉरेंसिक जांच में सामने आया कि इस पूरे साइबर फ्रॉड नेटवर्क का ऑपरेशनल कंट्रोल विदेश से किया जा रहा था। जांच के दौरान यह भी पाया गया कि दो भारतीय आरोपियों के बैंक अकाउंट से जुड़ा एक UPI ID अगस्त 2025 तक विदेशी लोकेशन से एक्टिव था। इससे यह साफ हो गया कि विदेश से ना सिर्फ निगरानी बल्कि रियल-टाइम ऑपरेशनल कंट्रोल भी किया जा रहा था।
2020 से चल रहा था विदेशी मास्टरमाइंड का खेल
CBI की जांच में यह भी सामने आया कि साल 2020 से विदेशी हैंडलर्स के इशारे पर भारत में शेल कंपनियां बनाई जा रही थी। इन विदेशी मास्टरमाइंड्स की पहचान Zou Yi, Huan Liu, Weijian Liu और Guanhua Wang के रूप में हुई है। भारतीय सहयोगी आम लोगों से पहचान से जुड़े दस्तावेज जुटाते थे और उन्हीं के नाम पर कंपनियां रजिस्टर कर बैंक अकाउंट खोलते थे.। इसके बाद इन अकाउंट्स के जरिए साइबर फ्रॉड से कमाई गई रकम को कई प्लेटफॉर्म और खातों के जरिए घुमाया जाता था ताकि मनी ट्रेल छुपाई जा सके।
हाई-टेक तरीके से की जा रही थी ठगी
CBI की जांच में खुलासा हुआ कि साइबर अपराधियों ने बेहद लेयर्ड और टेक्नोलॉजी-ड्रिवन तरीका अपनाया था। इसके तहत Google Ads, बल्क SMS कैंपेन, SIM-बॉक्स आधारित मैसेजिंग सिस्टम, क्लाउड इंफ्रास्ट्रक्चर, फिनटेक प्लेटफॉर्म और कई म्यूल बैंक अकाउंट्स का इस्तेमाल किया गया। ठगी के हर चरण को इस तरह से डिजाइन किया गया था कि असली कंट्रोलर्स की पहचान छिपी रहे और कानून प्रवर्तन एजेंसियों से बचा जा सके।



